इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के एक भाषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इस पर महाभियोग की बात कही है। आइए समझते हैं, जजों पर महाभियोग लाने की प्रक्रिया, इसके नियम और इससे जुड़े अहम सवाल।
हाँ, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और न्यायपालिका अधिनियम के तहत किसी जज पर महाभियोग लाया जा सकता है। यह केवल दुराचार (misbehavior) या कर्म-अक्षमता (incapacity) के आधार पर हो सकता है।
प्रस्ताव का समर्थन:
जांच समिति का गठन:
प्रस्ताव को स्पीकर या सभापति के सामने रखा जाता है। वे सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानूनी विशेषज्ञ की समिति बनाते हैं।
जांच और रिपोर्ट:
समिति आरोपों की जांच कर रिपोर्ट देती है।
संसद में मतदान:
सुप्रीम कोर्ट खुद अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता। वह मामले की जांच कर रिपोर्ट संसद को भेज सकता है।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों के लिए कोई लिखित आचार संहिता नहीं है। परंपरागत रूप से जजों से उम्मीद की जाती है कि वे:
भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा बनाए रखना जजों की जिम्मेदारी है। उन्हें अपने शब्दों और आचरण से न्यायपालिका में जनता का विश्वास बनाए रखना चाहिए। महाभियोग जैसी प्रक्रियाएं दुर्लभ और कठोर हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करती हैं कि न्यायिक पद की गरिमा बनी रहे।